Pages

Tuesday, July 13, 2010

ये हश्र एक रोज़ होना ही था

कितनी बेचैन गुजरी है रात

उमस भी हद से ज्यादा थी

पसीना और आंसू एक साथ बहे

घुटन जान लेने पर आमादा थी

तुम सोये सुकून से

हर रिश्ता तोड़ जो आये थे

हम पोटली लिए बैठे रहे लम्हों की

हमारे आँचल में छोड़ आये थे

चार आँखों का नसीब तय हुआ

दो को हँसना दो को रोना था

बड़ा गुरूर था अपनी मोहब्बत का

ये हश्र एक रोज़ होना ही था

20 comments:

  1. बड़ा गुरूर था अपनी मोहब्बत का
    ये हश्र एक रोज़ होना ही था

    अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

    ReplyDelete
  2. बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ

    ReplyDelete
  3. चार आँखों का नसीब...! क्या थोट है हुज़ूर

    ReplyDelete
  4. सोनलजी
    औरत सचमुच बहुत संवेदनशील होती है ।
    आपकी रचना में इसको समझा जा सकता है ।
    मेरी कामना है इन कोमल एहसासों की कविताओं का पटाक्षेप सुखद यादगार हो !
    अच्छी कविता के लिए बधाई !

    शस्वरं पर आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा…

    शुभकामनाओं सहित …

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    ReplyDelete
  5. उफ़्……………सारी वेदना उतर आयी है।

    ReplyDelete
  6. hi..

    wah..

    चार आँखों का नसीब तय हुआ

    दो को हँसना दो को रोना था

    बड़ा गुरूर था अपनी मोहब्बत का

    ये हश्र एक रोज़ होना ही था

    Dard milta sada muhabat main..
    fir bhi to log muhabat karte..
    tootta hi rahe unka dil par...
    hain muhabat ka fir bhi dam bharte...

    Sundar Bhavabhivyakti...

    Deepak..

    ReplyDelete
  7. ohho sonal ..padhna shuru kiya ti shuru ki chaar panktiyon se laga kahan thi kal..mausam to thanda aur mast tha...par malum hua ye to ishq ki garmi thi..well done ..keep it up :)

    ReplyDelete
  8. जो प्यार दो आँखों की नींद और दो आँखों का पानी बन जाये....वह प्यार नहीं, वहम है !

    ReplyDelete
  9. सरल भाषा, भावुक कर दिया।

    ReplyDelete
  10. मैं तो मोहब्बत को हमेशा जिन्दाबाद ही देखना चाहता हूं.
    ठीक है कि एक मोहब्बत का हश्र खराब हो गया लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर बार खराब ही हो
    मैं इस धारणा को भी नहीं मानता कि प्यार केवल एक बार ही किया जाता है.
    हम थोड़े लोग जो कुछ लिखते-पढ़ते हैं वे शायद दुनिया को बेहतर बनाने ही तो निकले हैं.
    इसलिए डोंट वरी बी हैप्पी
    आपको एक अच्छी रचना के लिए बधाई
    आप हर बार कुछ नया लिखकर चौका देती है वही आपने फिर से किया है. शानदार है.

    ReplyDelete
  11. निदा साहब कह गए हैं
    जीवन क्या है, चलता फिरता एक खिलोना है,
    दो आँखों में, एक से हँसना, एक से रोना है
    आज आपकी कविता ने आँखें चार होने से लेकर उन चार आँखों की किस्मत बयान कर दी...हमेशा की तरह अनूठी कविता...

    ReplyDelete
  12. मोहब्ब्त का हश्र ऐसा ही होता है कोई रोता है तो कोई हंसता है........

    ReplyDelete
  13. ओह....आज ऐसा कैसा मूड ? बारिश वाली जिसमें भीगे थे हम - तुम टाइप लिखो ना....

    हम पोटली लिए बैठे रहे लम्हों की

    हमारे आँचल में छोड़ आये थे

    बहुत संवेदनशील रचना...

    ReplyDelete
  14. गजब के भाव और उसपर आपका अंदाजे बयां। सचमुच लाजवाब कर दिया आपने।
    ................
    पॉल बाबा का रहस्य।
    आपकी प्रोफाइल कमेंट खा रही है?.

    ReplyDelete
  15. दिल के टूटने आर दर्द तो होता ही है ... फिर मुहब्बत की तो ये रोज़ रोज़ की दास्तान है ....
    अच्छा लिखा है बहुत ...

    ReplyDelete
  16. बहुत खुबसूरत रचना ,
    लाजवाब प्रस्तुती ||

    ReplyDelete
  17. चार आँखों का नसीब तय हुआ

    दो को हँसना दो को रोना था


    kitni baten yaad aa gayi is misre se..

    do naina ik kahani thoda sa badal thoda sa

    paani ...

    khub pasand aayi ye nazm ..:)


    do aankhon me ek se hansna ek se rona hai ...

    ReplyDelete
  18. मामला निपटा ही दिया आपने। उधर की कहानी भी कोई सुनाता। सुन्दर भाव!

    ReplyDelete
  19. चार आँखों का नसीब तय हुआ

    दो को हँसना दो को रोना था

    क्या बिम्ब दिया.... !!

    ReplyDelete