मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
Saturday, March 27, 2010
दुआ दूं या बददुआ
आज तुम्हारी बेवफाई से वाकिफ हुए है
क्या समझोगे कितने दर्द से गुज़रे हैं
जब थे मेरे साथ और ख़याल था गैर का
ऐसे लम्हे भी ज़िन्दगी से गुज़रे हैं
तुम थे खामोश हम समझे खफा हो
गुमसुम थे तो समझे कुछ जुदा हो
कोशिश की खुशिया भर दूं दामन में
अनजान थे तुम किसी और के भी खुदा हो
दर्द इतना है की रो भी नहीं पा रहे है
होश गुम है न जाने कहाँ जा रहे है
तुम्हारे सिवा दुनिया भी नहीं देखी
इस भरी दुनिया में तनहा नज़र आ रहे है
दुआ दूं या बद्दुआ तुम ही बताओ
कोई हल हो तुम ही सुझाओं
निभाई है मुझसे बे-वफाई जिस वफ़ा से
तुम्हे ख़त्म कर दूँ या खुद को मिटाऊं
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निभाई है मुझसे बे-वफाई जिस वफ़ा से
ReplyDeleteतुम्हे ख़त्म कर दूँ या खुद को मिटाऊं
ओह बेरुखी से उत्पन्न आक्रोश को...किस अनादाज़ में बयाँ किया है...बहुत खूब
bahut samvedansheel....!!
ReplyDeleteदुआ ही दे दो..जाने क्या मजबूरियाँ रही होंगी वरना कोई बेवफा नहीं होता..
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना!
तुम्हें खत्म कर दूं या खुद को मिटाऊं - दोनों का मतलब तो एक ही है जी साफ साफ धमकी दी जा रही है।
ReplyDeletedard umad ke barasta dikhta hai yahan par to..
ReplyDeleteman ki baat to Udan Tashtri ji ne kah diya hai ........behad sundar rachna..
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www,vicharokadarpan.blogspot.com
bas dua he de dijiye.. bad bua chahne walon se hoti kahan hai...
ReplyDeletekafi achcha likha hai..
good shabd sanrachna........
ReplyDeletebahut dard hai..jane kaise sameta itna ashk dil ke ander jo aaj tak lahu ban kar tapak rahe hain..mujhe to saja mili hai wafa kane ki isliye tanha bhatak rahe hain..achha likha hai..pasand aaya
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