पता नहीं उसकी सूरत मेरे सनम सी क्यों थी
चेहरा तो रोशन चिराग सा था
आँखों के कोनों में नमी सी क्यों थी
वो करता रहा मुझसे बात
और मेरे दर्द भी बांटता रहा
जो भी कहा सुना उसने गौर से मेरे दिल में भी झाकता रहा
गर उससे नहीं है कोई भी रिश्ता
ज़िन्दगी उस लम्हात पर रुकी क्यों है ......
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDelete"वो करता रहा मुझसे बात
ReplyDeleteऔर मेरे दर्द भी बांटता रहा
जो भी कहा सुना उसने गौर से
मेरे दिल में भी झाकता रहा"
उच्चस्तरीय रचना बधाई - पाठकों को बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी.
kya kahun...bahut touching
ReplyDeletesanam aur khuda...kya khoob kaha
चेहरा तो रोशन चिराग सा था/आँखों के कोनों में नमी सी क्यों थी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पंक्तिया
बिल्कुल अलग शैली और अंदाज़ दिखा आपका ..लिखती रहें ..बहुत संभावनाएं दिख रही हैं ..आगे भी पढते रहेंगे
ReplyDeleteअजय कुमार झा
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया.. देखा तो बहुत ही ख़ूबसूरत कविता से तार्रुफ़ हुआ..
ReplyDeleteआभार..
जय हिंद..
achchha likhti hain aap
ReplyDeleteतू है या खुदा है
ReplyDeleteहमें तो बस इतना पता है
कि...... हमारा दर्द तुमसे है
हमारा सुकून तुमसे है
हमें क्या फर्क...................
हमारा प्यार खुदा है या खुदा का बंदा !!
ख़ुदा ही जाने ... ... .
ReplyDeletemujhe ek ek pankti achi lagi.....sach mei pyar mei khuda ki surat sanam se hi milti hei.....amin
ReplyDeleteसबसे अलग सबसे जुदा....सुन्दर....
ReplyDeleteमेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
ReplyDeletetareef ke liyee..
achhi rachna hai ..shuruwati misre padh ke kisi ka likha ek sher yaad ho aaya ki
ReplyDeleteibadat ki ibaadat hai mohabbat ki mohabbat hai
mere mashook ki soort khuda se milti julti hai