वो जिद पे अड़ा है
वो सबसे बड़ा है
मुद्दत से यही तो
वो दोहरा रहा है
दुनिया का बोझ लिए
अपने दिमाग पर
अपने ही घर को
भूला जा रहा है
बात करता है हरदम
वो मजहब खुदा की
इंसानियत तो उसको
याद ही नहीं है
चुन चुन कर निशाना
वो साधे हुए है
किसी की सुनने को
तैयार ही नहीं है
पैगम्बरों ने हमेशा
जोड़ा है दिलो को
बेबसों को हर दम
गले से लगाया
मोहब्बत तो हर
दीन का फलसफा है
ये नफरत के किस्से
कहाँ से सीख़ आया
वो जिद पे अड़ा है
BEHTREEN PARASTUTI
ReplyDeleteMAAN GAYE SONAL JI
EK SE BADH KAR EK SUNDER RACHNAYE
ReplyDeleteबात करता है हरदम
ReplyDeleteवो मजहब खुदा की
इंसानियत तो उसको
याद ही नहीं है
sach sahaj v sampoorn
क्या बात है ......लाजवाब रचना
ReplyDeleteवाह सोनल जी !
ReplyDeleteआज के परिप्रेक्ष्य में बहुत प्रभावशाली कविता ! जगह बनाती इस कविता के लिए शुभकामनायें
Dear Sonal,
ReplyDeletegr8 ur poem.........is marvellous
Keep it up......will cal u in Kavi Sammelan
Best of Luck
"बात करता है हरदम
ReplyDeleteवो मजहब खुदा की
इंसानियत तो उसको
याद ही नहीं है"
bahoot khoob.....
kunwar ji,
beautiful creation..
ReplyDeleteaur shayas agar "WO" padhe to zid se zaroor hat jayega..
bahut achcha lekh hai..
अच्छी लगी ....
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