कृति अपने हाँथ गौर से देख रही थी आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे ,कोई तो बता दे कौन सी है किस्मत की रेखा ...उसने तो नहीं खिची तो फिर काकी क्यों कोसती है उसको, कृति के माँ पिताजी एक दुर्घटना में नहीं रहे थे जब वो सिर्फ तीन साल की थी ,इश्वर का आशीर्वाद था या कोई अभिशाप इतनी भयानक दुर्घटना के बाद भी वह बच गई. उसके काका अपने साथ ले आये,शुरू में तो काकी का व्यवहार अच्छा था ममता भी मिली पर समय और काकी के परिवार के बढने के साथ काकी ममता बाटने में कृपण हो गई...
उसे किताबे समझ में कम आती थी आज परीक्षा का परिणाम आने के बाद घर में कोहराम मचा था , पांचवी कक्षा में फेल हुई थी, काकी की आवाज़ कानो में पिघले शीशे की तरह उतर रही थी " पता नहीं हाँथ में कौन सी रेखा लेकर जन्मी है ,सूरत शकल तो ऊपर वाला देता है इसके दिमाग में भी गोबर भरा है ,सब तो यही कहेंगे बिना माँ बाप की लड़की को ठीक से नहीं रखा ...साल की फीस गई ,कापी पेन्सिल का खर्चा अलग ...अगर पढ़ लिख जाती तो कही ब्याह कर छुटी पाए बेपढ़ी को कौन ब्याहेगा आज के ज़माने में "
काका कम बोलते थे पर उनकी आँखों में रोष साफ़ दिख रहा था..
कृति कोने में खड़ी अपने पैर के अंगूठे से ज़मीन पर पता नहीं कौन सी आड़ी तिरछी रेखाए खीच रही थी,कितना तो पढ़ा था पर लिख नहीं पाई परीक्षा में हाय भगवान् क्या करूँ .
शाम को दूध पीने के लिए काकी कृति को ढूँढने लगी याद आया लड़की ने तो स्कूल से आकर कुछ खाया भी नहीं है..आवाज़ लगे पर कृति का जवाब नहीं आया सारे कमरे देख डाले कृति कही नहीं थी
किसी अनिष्ट की आशंका से काकी का कलेजा मुह को आ गया" कुछ कर करा ना लिया हो ,मुझे भी इतना नहीं डांटना चाहिए था बच्चो के आत्महत्या के समाचार आँखों के आगे घूमने लगे, पढ़ाई में कमजोर है पर बेचारी गौ की तरह शांत है,बाकी सब तो जल्दी सीख लेती है,एक मैं भी कहाँ ध्यान देती हूँ उसकी पढ़ाई पे , एक tution लगा दूं तो सब ठीक हो जाए ...ढूंढते हुए ना जाने कितने देवी देवता मान डाले ...कृत को खोने के एहसास से काकी की ममता पर पड़ी धूल मानो हट गई तीन साल की मासूम कृति की छवि आँखों के आगे तैर गई, स्वर्गवासी जेठानी मनो पूछ रही हो मेरी छोटी बिटिया का ध्यान नहीं रख पाई...
सारा घर देख लिया था पर कही नहीं थी कृति अचानक ध्यान आया छत तो छुट गई...दौड़ते हाफ्ते दुमंजिल चढ़ गई..कोने में कृति ज़मीन पर पड़ी थी डरते हुए उसको गोद में उठाया,गलों पर आंसुओं की लकीरे सूख गई थी रोते रोते भूखी प्यासी सो गई थी ...
काकी ने ने गले से लगाया और आंसू फूट पड़े कृति ने आँखे खोली अपनी हथेली काकी की और बढ़ा दी पेन से गहरी लकीर खिची हुई थी कृति बोली उसके आँखों में अजीब सी चमक थी
"काकी मैंने किस्मत की रेखा बना ली है ठीक है ना अब मैं कभी फेल नहीं होउंगी "
काकी ने उसे जोर से गले लगाकर बोला "बेटा तू नहीं तेरी काकी फेल हुई है , माफ़ कर दे "
गजब......वाह......
ReplyDeleteबढ़िया...बालमन का अच्छा चित्रण
ReplyDeleteवाह !..अंतरात्मा को छु गयी ये कहानी ........बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteविलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
ReplyDelete.........
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
बहुत ही सुन्दर भावुक कहानी। आंख भर आई।
ReplyDeletedil ko chhoo gayi aapki rachna
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