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Wednesday, March 17, 2010

बादल और अश्क

बादल समेट लिए हमने की मुश्किल में काम आयें


सूख गई है आँखें इतने गम के मौसम छाये

रोने को बस बादलों का ही सहारा है

जब बरसे तो समझो ये अश्क हमारा है


आप खुशनसीब है की आपकी आँखों में अभी नमी है

हमको तो इस नमी की भी कमी है

हसे या रोये हर वक्त बस तन्हाई थी

आईना भी हैरान है आखिरी बार कब तू मुस्काई थी



 
 
 
 
 
 

8 comments:

  1. दिल के किस कोने से निकालती हैं आप ऐसी कविता.....

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  2. सुंदर रचना.. बेहतरीन प्रयास

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  3. दर्द को खूब छलकाया है...उम्दा रचना..

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  4. बहुत बढ़िया..भावपूर्ण!

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  5. दर्द को खूब छलकाया है...उम्दा रचना..

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  6. मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
    aapki ki tareef ke liye
    behtreen parastuti..........

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  7. बेहतरीन भावपूर्ण रचना..सुन्दर प्रस्तुति...बधाई.


    __________________
    "शब्द-शिखर" पर - हिन्दी की तलाश जारी है

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  8. "आप खुशनसीब है की आपकी आँखों में अभी नमी है
    हमको तो इस नमी की भी कमी है"
    दिल से दुआ - आपकी और हम सब की आखों की नमी बनी रहे और आप यों ही लिखती रहें.

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